
लोकसभा में ‘विकसित भारत–जी राम जी विधेयक, 2025’ पर चर्चा के दौरान सियासत पूरी तरह गर्म नजर आई।
तेलुगु देशम पार्टी (TDP) ने जहां ग्रामीण रोजगार और आजीविका के उद्देश्य का समर्थन किया, वहीं फंडिंग मॉडल को लेकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया।
TDP का साफ कहना है — Intent अच्छा है, लेकिन Implementation का Bill राज्यों को चुकाना पड़ेगा।
Funding Formula बना सबसे बड़ा Flashpoint
TDP ने खासतौर पर 60% केंद्र + 40% राज्य फंड शेयरिंग मॉडल पर सवाल उठाए। पार्टी का तर्क है कि राज्यों पर पहले से आर्थिक दबाव है। अतिरिक्त जिम्मेदारी से योजनाओं की ज़मीनी प्रभावशीलता प्रभावित हो सकती है। हालांकि TDP ने यह भी स्पष्ट किया कि वह विधेयक के खिलाफ नहीं, बल्कि राज्यों के हितों की सुरक्षा चाहती है।
Congress का हमला: “MGNREGA को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है”
कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया कि मनरेगा को कमजोर किया जा रहा है। महात्मा गांधी का नाम हटाना गरीब-विरोधी सोच दर्शाता है।
कांग्रेस सांसद जयप्रकाश ने कहा कि “अगर रोजगार की गारंटी चाहिए तो राज्यों का हिस्सा 10% ही होना चाहिए, जैसा मनरेगा में था।”
कांग्रेस ने यह भी मांग की कि बिल को स्थायी समिति या JPC के पास भेजा जाए।
Committee या जल्दबाज़ी? स्पीकर को पत्र
ग्रामीण विकास पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष सप्तगिरि शंकर उलाका ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर विधेयक को गहन समीक्षा के लिए समिति को भेजने की मांग की।

उनका कहना था कि “यह कोई औपचारिक कानून नहीं, बल्कि ग्रामीण श्रमिकों के अधिकारों से जुड़ा मामला है।”
BJP का जवाब: ‘नाम में ही समाधान’
बीजेपी सांसदों ने बिल का बचाव करते हुए कहा कि ‘जी राम जी’ नाम से ही भ्रष्टाचार रुकेगा। गांव की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। रोजगार के दिन 100 से बढ़ाकर 125 कर दिए गए हैं। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विपक्ष से अपील की कि “पहले चर्चा पूरी सुनिए, फिर फैसला कीजिए।”
नाम बदला, बहस वही!
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार इसे New Vision for Rural India बता रही है। विपक्ष इसे Old Rights under New Name मान रहा है। असल लड़ाई रोजगार से ज्यादा नाम, श्रेय और फंड कंट्रोल की है।
आगे क्या?
क्या बिल स्थायी समिति में जाएगा? क्या फंडिंग पैटर्न बदलेगा? या फिर बहुमत के दम पर पास हो जाएगा?
फिलहाल इतना तय है कि ‘जी राम जी’ बिल संसद में सिर्फ कानून नहीं, सियासी लाइन ऑफ कंट्रोल बन चुका है।
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